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| KARAMAT E GAUSE Azam |
गौस ए आज़म की करामत:
शेख अबू मसऊद अहमद बगदादी रहमतुल्लाहि अलैहि से मन्कूल है कि अबुल मुज़फ्फर हसन बिन नजम बिन अहमद ताजिर बगदादी हज़रत शैख़ हम्माद वबास रहमतुल्लाहि अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर हुए
और उनसे कहने लगे कि ऐ मेरे सरदार ! मैंने मुल्के शाम की तरफ काफिले के साथ तय्यारी की है और सात सौ दीनार का' माल है।
क़त्ल का वाक़िआ!
हज़रत शैख़ हम्माद रहमतुल्लाहि अलैहि ने कहा कि अगर तुम इस साल सफर करोगे तो कत्ल हो जाओगे और तुम्हारा माल भी छिन जाएगी।
तब वह उनके पास से ग़मज़दा होकर निकले और सय्येदी गौसुल आज़म अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर, हुए और वही बात की जो शैख़ हम्माद रहमतुल्लाहि अलैहि से की,
सफ़र का वाक़िआ!
तब उनसे सय्यिदिना अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि ने फरमाया कि तुम सफर करो, तुम सही सलामत माल व मुनाफा लेकर वापस आओगे, मैं इसका ज़िम्मेदार हूँ।
तब वह मुल्के शाम की तरफ रवाना हुए और हज़ार दीनार में अपना माल बेच दिया। एक दिन हलब के सराय में ठहरे और वहाँ के इस्तिन्जा ख़ाने (पेशाब घर) में दाखिल हुए
और हज़ार दीनार ताक में रखकर भूल गये और बाहर निकल आए, अपने डेरे पर आकर सो गये। ख़्वाब में क्या देखते हैं
डाकुओं का काफिला !
कि जैसे वह काफिले में हैं जिस पर डाकू लूटने को दोड़े हैं, सबका माल लूटकर ले गये और सबको कत्ल कर दिया। उनमें से एक ने उनको भी ख़न्जर मारकर हलाक कर दिया,
तब वह घबराकर उठ खड़े हुए। खून का असर गर्दन पर पाया और चोट के दर्द को महसूस किया। उनको अपना माल याद आया तो जल्दी से खड़े हुए और पेशाब घर में जाकर देखा तो ताक में उनकी रक़्म मौजूद थी,
बगदाद का सफर!
उसको लिया और बगदाद की तरफ सफर करके आए। शेख हम्माद रहमतुल्लाहि अलैहि उनको सुलतानी बाज़ार में मिले और कहने लगे कि ऐ अबुल मुज़फर !
सय्यिदिना अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि की ख़िदमत में जाओ क्योंकि वह अल्लाह तआला के महबूब हैं, उन्होंने तुम्हारे बारे में अल्लाह तआला से 17 बार दुआ मांगी है।
यहां तक कि जो अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए बेदारी में लिखा था उसको ख़्वाब में कर दिया। वह फिर सय्यिद गौसुल आज़म रहमतुल्लाहि अलैहि की ख़िदमते अकदस में हाज़िर हुए
तो आपने पहले ही फरमाया कि तुमको शेख हम्माद रहमतुल्लाहि अलैहि ने कहा कि मैंने तुम्हारे लिए 17 मर्तबा हक तआला से दुआ की है,
मुझे अपने रब की कसम ! मैंने तुम्हारे लिए 70 मर्तबा दुआ मांगी है, यहां तक कि जो कत्ल जागने की हालत में लिखा था वह ख़्वाब में कर दिया गया और जो माल लुटना था वह भूल में कर, दिया गया।
(बहजतुल असरार, पेज 73)

