समझ में ये नहीं आसां कि क्या अख़्तर रज़ा तुम हो समझ में बस यही आया सुन्नियों के पेशवा तुम हो
तुम्ही इस वक्त हो कायम मकामे मुफ्तीए आज़म
बिला शक जानशीने मुस्तफा, अख़्तर रज़ा तुम हो
रज़ा का हुज्जतुल इस्लाम का मुफ्तीए आज़म का
है जिनमें अक्स उन सबका वो रौशन आईना तुम हो
तुम्हीं को जेब देता है लकब ताजुश्शरीया का
वकारे सुन्नियत तज़ईन दीने मुस्तफा तुम हो
बहारें तुम्हीं से गुलिस्ताने आला हज़रत में
रज़ा के गुलिस्तां का वो गुले रंगीन अदा तुम हो
रज़ा व मुफ्ती आज़म हैं राज़ी जिससे तुम राज़ी
रज़ाए आला हज़रत हो रज़ाए मुस्तफा तुम हो
इलाही उनके सज्दे को भी तू चमका दे इस दर्जा
कि जो देखे कहे हां मज़हरे अख़्तर रज़ा तुम हो
है ख्वाहाने करम फारूक खस्ता हाल भी आक़ा
करो चश्मे करम कि साहबे जूदो अता तुम हो
MANQABAT E HUZOOR TAJUSHSHARIA, TajushSharia Manqabat, Manqabat Mufti Akhtar Raza khan Qadri TajushSharia