ताबे मिरआते सहर गर्दें बयाबाने अरब
गाजए रूए कमर दूदे चरागाने अरब
अल्लाह अल्लाह बहारे च-मनिस्ताने अरब
पाक हैं लौसे खजां से गुलो रैहाने अरब
जोशिशे अब्र से खूने गुले फ़िरदौस करे
छेड़ दे रग को अगर खारे बयाबाने अरब
तिश्नए नहरे जिनां हर अ -रबिय्यो अ-जमी !
लबे हर नहरे जिनां तिश्नए नैसाने अरब
तोके गम आप हवाए परे कुमरी से गिरे
अगर आजाद करे सर्वे खिरामाने अरब
मेहर मीज़ां में छुपा हो तो हमल में चमके
डाले इक बूंद शबे दै में जो बाराने अरब
अर्श से मुज्दए बिल्कीसे शफाअत लाया
ताइरे सिदरा नशीं मुर्गें सुलैमाने अरब
हुस्ने' यूसुफ़ पे कटीं मिस्र में अंगुश्ते जनां
सर कटाते हैं तेरे नाम पे मर्दाने अरब
बज्मे कुदसी में है यादे लबे जां बख्श हुजूर
आलमे नूर में है चश्मए हैवाने अरब
बुलबुलो नील- परो कब्क बनो परवानो
महो खुरशीद पे हंसते हैं चरागाने अरब
हूर से क्या कहें मूसा से मगर अर्ज़ करें
कि है खुद हुस्ने अज़ल तालिबे जानाने अरब
क-रमे ना'त के नज्दीक तो कुछ दूर नहीं
कि रज़ाए अ-जमी हो सगे हस्साने अरब
शायर: सय्यदी आला हज़रत इमाम
अहमद रज़ा खान