तूबा में जो सब से ऊंची नाजुक सीधी निकली शाख
मांगूं नाते नबी लिखने को रूहे कुदुस से ऐसी शाख
मौला गुलबुन, रहमत जरा, सिब्तेन' उस की कलियां फूल
सिद्दीको फ़ारूको उस्मां, हैदर हर इक उस की शाख
शाखे कामते शह में जुल्फो चश्मो रुख्मारो लब हैं।
सुम्बुल, नरगिस, गुल, पंखड़ियां कुदरत की क्या फूली शाख
अपने इन बागों का सदका वोह रहमत का पानी दे
जिस से नख्ले दिल में हो पैदा प्यारे तेरी विला की शाख
यादे रुख में आहें कर के बन में मैं रोया आई बहार
झूमी नसीमें, नैसां बरसा, कलियां चटकीं, महकी शाख
आले अहमद खुज़ बि-यदी या सय्यिद हम्जा कुन मददी
वक्ते खज़ने उम्रे रज़ा हो बरगे हुदा से न अरी शाख
शायर → आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान