लब पे जब नामे मुहम्मद की सदा आती है।
उनके दरबार से रहमत की घटा आती है।
हिजरे सरकार के ग़म में जो क़ज़ा आती है।
उस कफ़न के लिए जन्नत से रिदा आती है।
मर गया इश्क़ मुहम्मद जो बसा कर दिल में
क़ब्र में उसकी मदीने से हवा आती है।
क़ब्र में बोले नकीरैन के सोने दो इसे
इसकी रग रग में हमें बूए वफ़ा आती है।
उनका बीमार हूं छेड़ो न तबीबो मुझको
मेरी हर रोज़ मदीने से दवा आती है।
भीनी खुशबू से महक जाती हैं गलियां "गुलज़ार"
उनके रौज़े से लिपट कर जो सबा आती है।